‘आभानेरी’ के बारे में हमनें बहुत सुना था। आज जब भी स्टेपवेल(बावड़ी) का ज़िक्र होता तो सबसे पहले आभानेरी को याद किया जाता है। तब से मन में था कि इस गाँव में जाना चाहियें आखिर ऐसा क्या ख़ास है यहाँ! अच्छा एक बात अब हम बावड़ी ही लिखेंगे, स्टेपवेल वो मजा नहीं दे रहा है जो बावड़ी बोलने में आता है।

चूँकि आभानेरी चाँद बावड़ी की वजह से ही प्रसिद्ध हुआ है तो हमें भी वही देखने की उत्सुकता थी। लेकिन वहाँ पहुँचने पर लगा कि पूरा गाँव ही आभा में लिपटा हुआ है। ऐसा कहते है आभानेरी का शुरूआती नाम ‘आभा नगरी’ था जिसका मतलब है ‘रौशनी का शहर’, लेकिन तब से लेकर तोड़ते-मरोड़ते हुए ये अब ‘आभानेरी’ कहलाने लग गया है।

जयपुर से दौसा होते हुए करीब 93 किलोमीटर बाइक चलाने के बाद सिकंदरा में चाय-कचौरी ब्रेक लेते ही हम सीधा चल दिए आभानेरी की ओर। आभानेरी आपको सिकंदरा और बांदीकुई के बीच में मिलेगा। शहरी लोग जो गाँव को सुनते आए है और जाने की इच्छा रखते है तो बता दे यह आपको ठेट गाँव का अनुभव करवाएगा।

Photo By : Vishwas Singh
गाँव में घुसते ही सबसे पहले आपको एक बहुत पुराना झिर्ण-शीर्ण अवस्था में मंदिर दिखेगा। उसे देखते ही हमें उसके बारे में जानने का मन हुआ कि आखिर यह इस हालत में क्यों है? और ठीक क्यों नहीं किया हुआ है?

उसी के पास एक मंदिर और था, हनुमान मंदिर जहां पर प्रसादी का कार्यक्रम चल रहा था। अब नहीं जानने वाले यह ज़रूर जानना चाहेंगे कि प्रसादी क्या होती है? तो उस पर कभी एक आर्टिकल लिख लेंगे तब जान जाइएगा। अरे! कमेंट में पूछ लीजियेगा। बता देंगे।

खैर उसी टूटे-फूटे मंदिर पर आते है। वो देखने में किसी भी एंगल से मॉडर्न आर्किटेक्चर नहीं लग रहा था। जब पास जाकर देखा तो हमारा सोचना बिलकुल सही था। उसमें लगी मूर्तियाँ और कलाकृति उसे 500 साल से ज्यादा भी पुराना बता रही थी।

वहाँ बैठे पुजारी जो पूजा पाठ में लगे हुए थे उनसे बात हो नहीं पाई। कुछ फोटोग्राफ्स खींचकर हम थोड़ी देर वहीँ बैठे रहे। एक अजीब सुकून था उस जगह। शायद ही मैं उसे किसी ब्लॉग के ज़रिये बता पाउँगा, आप वहीँ जाकर उसे अनुभव करें तो बेहतर होगा। अफ़सोस तब तक भी हमें मंदिर के बारे में कुछ ख़ास जानने को नहीं मिला यहाँ तक की मंदिर किस देवी-देवता का है यह तक पता नहीं चल पाया था।

वहाँ से चलने के बाद हमारी नज़र उस बावड़ी को खोजने में लग गयी जिसकी वजह से आभानेरी का नाम भारत के नक़्शे पर आया, ‘चाँद बावड़ी’! उसी मंदिर से सामने की ओर चौकोर आकार में ईमारत दिख रही थी, उसी के अन्दर थी चाँद बावड़ी। चारो ओर से बड़ी-बड़ी दीवारों से गिरी। बाहर से देखने पर एक मामूली जगह लेकिन अन्दर जाने पर आपके अन्दर की सारी क्रिएटिविटी उसके सामने नतमस्तक होती नज़र आएगी। सफ़र की थकान को पल भर में गायब होते देखा है हमनें, और इसका पूरा श्रेय चाँद बावड़ी को जाता है।

6-9 पिलरों पर टिका उसका एंट्रेंस ही आपको कहीं ओर ले जाएगा। हमनें जैसे ही वो हिस्सा पार किया तब दर्शन हुए चाँद बावड़ी के। एक खूबसूरत महल से सटी हुई। चारो तरफ महल के हिस्से कमरों में बटें हुए थे। उन कमरों में वहाँ तब लोग रहा करते थे और महल में राज परिवार।


चाँद बावड़ी सबसे पुरानी बावड़ियों में गिनी जाती है। इसे ‘निकुम्भ डायनेस्टी’ के राजा चाँद ने 800 से 900 शताब्दी के बीच में बनवाया था, उन्ही के नाम पर इसका नाम चाँद बावड़ी पड़ा है। यहाँ बने महल में राज परिवार गर्मियों के दिन में रहने आता था। यह महल बनाया ही इसीलिए गया था। बावड़ी के अन्दर बने होने के कारण बाहरी वातारण से यह ठंडा रहता है। इस महल के चारो और बने कमरों में यहाँ की आम जनता गर्मी से निजात पाने के लिए आ जाया करती थी। इस तरह की बावड़ियाँ पानी के स्टोरेज का काम करती थी।

चाँद बावड़ी में करीब 3500 सीढियाँ बनी हुई है और यह लगभग 30 मीटर अन्दर तक जाती है यानि की 13 मंजिला ईमारत जितनी। ऐसा कहा जाता है ऊपर की तुलना में चाँद बावड़ी के अन्दर का तापमान 5 से 6 डिग्री तक कम रहता है। तब हमें समझ आया राज परिवार यहाँ क्यों आ जाता था।

अभी आप यहाँ जाओगे तो बावड़ी के चारो ओर आपको मूर्तियाँ रखी हुई मिलेगी, टूटी-फूटी हालत में। ये सभी उसी टूटे हुए मंदिर की मूर्तियाँ है जो हाल ही में बावड़ी के आसपास रख दी गई है पहले ये मंदिर के ही पास में रखीं हुई थी। यह बात हमें पास ही में चायवाले अंकल ने बताई।


उन्ही अंकल ने इस मंदिर की देवी का नाम भी बताया, मंदिर ‘हर्षत माता’ का है। इस मंदिर के इस हालत में होने का कारण दसवीं शताब्दी के दौरान बाहर के आक्रमणकारियों का इसे तोड़ना बताया है और तब से यह मंदिर इसी हालत में है। तब हमें पता चला कि यह 10वी शताब्दी का बना हुआ है।
लेकिन कुछ भी हो आप इस मंदिर से अपनी नज़र नहीं हटा सकते हो। यह कमाल तब के आर्किटेक्चर्स का है। आज की तारीख में इतनी सुविधायें उपलब्ध होने का बावजूद ऐसा मंदिर या ईमारत बनाना हमारी पंहुच के बाहर है।
बावड़ी और हर्षत माता के मंदिर के बाहर एक छोटा सा बाज़ार लगता है। वहाँ आप स्टोन आर्ट के सामान खरीद सकते हो। हमने आभानेरी की चाय भी वहीँ चखी थी। कुल्हड़ वाली चाय। लेकिन अफ़सोस वो उस बावड़ी के पानी की नहीं थी। बावड़ी अब सूख चुकी है, मंदिर अभी क्षतिग्रस्त अवस्था में है। लेकिन आभा नगरी अभी भी अपनी आभा बिखेर रही है। उसी आभा की वजह से हम जयपुर से 100 किलोमीटर दूर आभानेरी देखने आ गए।

आभा नगरी को आभानेरी बनते यहाँ के लोगो ने देखा है। उम्मीद करते है कि आप जल्द ही आभानेरी को देखने जाएंगे, आभानेरी के कुछ ओर बनने से पहले।
अभी के लिए अलविदा। 🙂