‘ईश्वर काका’ नाम से हम को याद रहने वाले टीवी और थिएटर जगत का एक जाना पहचाना चेहरा 7 जनवरी को इस दुनिया से अलविदा कह गया। श्री वल्लभ व्यास करीब 60 साल के थे और पिछले 9 साल से पेरालिटिक अटैक से जूझ रहे थे। उन्होंने अपनी अंतिम सांस जयपुर में ली। लेकिन ये आर्टिकल आपको एक आर्टिस्ट के जीवन की सच्चाई बताने के लिये है कि कैसे उसका किरदार सालों तक जिंदा रह जाता है पर उसकी असली ज़िन्दगी गुमनामी में गुज़र जाती है। कहने को तो हम ये बोल सकते है कि जीवन का यही सच है पर क्या वाक़ई यही जीवन का सच है?
नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के छात्र रहे श्री वल्लभ व्यास ने सन् 1984 में ‘मुझे जवाब दो’ सीरियल से अपनी शुरुआत की। उसके बाद 1993 में आई ‘संडे’ से उन्हें पहचान मिलना शुरू हुई। फिर सरफ़रोशी, सीआईडी, लगान, बूंटी और बबली जैसी 60 फिल्में कम्पलीट की और लगभग 3 दशक तक हिंदी सिनेमा में एक्टिव रहे। उनका सबसे यादगार रोल ‘लगान’ से था, ईश्वर काका। हां, ईश्वर काका से ही सब उन्हें जानते थे वरना उनका असली नाम तो कई लोगो को गूगल ही करना पड़ा होगा। उनकी आख़िरी रिलीज़्ड मूवी तिग्मांशु धूलिया की ‘शागिर्द(2011)’ थी।

इन पिछले 9 सालों से सिर्फ उनकी बीवी शोभा और उनकी बेटियां ही इनकी देखभाल कर रही थी। शोभा जी का कहना था कि CINTAA की तरफ़ से कोई मदद नहीं कि गई। हालांकि बाद में अरुण बाली और गजेंद्र चौहान ने 10,000 और 50,000 रुपयों की मदद करवाई। श्री वल्लभ व्यास के को-एक्टर्स रहे अमीर खान, इरफान खान और मनोज बाजपेयी ने भी आर्थिक मदद की।
पर इन सबके बावजूद क्या कोई भी बॉलीवुड से आगे आया? क्या इस समाज ने इस परिवार की मदद की? क्या हमनें और आपने इस मुद्दे को पहले कभी उठाया? अगर उठाया होता तो शायद आज ‘ईश्वर काका’ आज हमारे बीच होते और न जाने कितने ही ‘ईश्वर काका’ जैसे जीवंत रोल हमारे सामने पेश करते।
आर्टिस्ट को इज़्ज़त मिलना तो शुरू हो गयी है लेकिन अब भी उनके काम को काम नहीं समझा जाता। उन्हें हल्के में लिया जाता है। अगर आप पंकज कपूर के फैन है तो इस आर्टिकल का टाइटल आपको जाना-पहचाना लगेगा तो ये उसी से प्रेरित है। थोड़ी देर ज़रूर हो गयी है, पर ये बात आप तक हम पहुंचाना चाहते थे। अगर सच में ऐसे ही चलता रहा तो कोई और हिम्मत नहीं करेगा आर्टिस्ट बनने की। ‘एक आर्टिस्ट की मौत’ सभी आर्टिस्टों के नाम। धन्यवाद।