कुछ ख़ास है सांगानेर के इस मंदिर का इतिहास, आप भी पढ़िए।

आज के दौर में मंदिर-मस्जिद पर बात करने लग जाओ तो आसपास के लोग कम्युनल/सेक्युलर का ठप्पा लगाने लग जाते है। लेकिन हमारा उद्देश्य इस आर्टिकल के द्वारा आपको इतिहास से जुड़े किस्से-कहानियों को आप तक पहुँचाना है। सांगानेर, जयपुर-टोंक रोड पर पड़ता एक छोटा सा टाउन, राजस्थान के प्राचीनतम नगरों में सांगानेर का भी उल्लेख मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस समतल भूमि पर ये बसा हुआ है वह सरस्वती नदी का तट हुआ करता था। लेकिन सांगानेर शुरू से सांगानेर नहीं था, पहले इसका नाम संग्रामपुर हुआ करता था। तब सांगानेर के पास चम्पावती, चाकसू, तथकगढ एवं आम्रगढ़ राज्य थे। जिन्हें सांगानेर की समृद्धि और उन्नति से ईर्ष्या थी। इन राजाओं ने मिलकर सांगानेर पर आक्रमण कर इसे तहस नहस कर दिया। इन राजाओं के सैनिकों ने ‘आदिनाथ मंदिर’ को भी तहस नहस करने के लिए आगे बड़े लेकिन वे मंदिर की सीमा में प्रवेश भी नहीं कर सके। बाद में राजकुमार सांगा ने इसे उजड़ा देख फिर से सांगानेर की बसावट की।

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Photo Courtesy: Sanghi ji ka mandir

सांगानेर स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर संघी जी पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है। यह मंदिर 7 मंजिल का है। जिसकी दो मंजिल ऊपर व पांच नीचे की ओर बताते है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के बीच में यक्ष देव द्वारा रक्षित भूगर्भ स्थित है जहां प्राचीन जिन चैत्यालय विराजमान हैं । वहां मात्रा बालयति दिगम्बर साधु ही अपनी साधना के बल पर प्रवेश कर सकते हैं। अन्य किसी ने भी वहां पर प्रवेश करने का साहस किया तो उसके दुष्परिणाम होते हैं।

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Photo Courtesy: Sanghi ji ka mandir

इसके पीछे की कहानी:

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Photo Courtesy: Sanghi ji ka mandir

इसका इतिहास किसी फेयरी टेल की तरह मालूम पड़ता है। जैसे दादी-नानी की सुन्दर कहानियाँ हो। ऐसा बताया गया है जहाँ संघी जी का मंदिर है वहाँ एक विशाल बावड़ी थी। उसके किनारे पर एक प्राचीन पर ख़राब हालत में एक जिन चैत्यालय था, जो ‘तल्ले वाले मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध था। जिसका तल बावड़ी के अंदर था। आठवी शताब्दी के अंतिम सालो में बैसाख शुक्ल तीज के दिन अचानक पश्चिम दिशा से ख़ूबसूरत सजा हुआ विशाल गजरथ चलता हुआ आया, उसे वबड़े-बड़े हाथी खींच रहे थे। रथ पर कोई महावत नहीं था। कई स्थानों पर जनता एवं पहरेदारों द्वारा रोके जाने पर भी वह रथ नहीं रुका और तेज़ गति से चलकर इस बावड़ी के किनारे चैत्यालय के पास आकर रुक गया। ऐसा कहा जाता है कि यह रथ कहाँ से कैसे आया इसकी जानकारी किसी को नहीं मिल पाई। रथ रुकते ही हजारों नगरवासी एक जगह आ गए। सेठ भगवानदास की हवेली भी इस बावड़ी के पास ही थी, वे रथ के पास आये तो देखा कि ये तो दिगम्बर जैन प्रतिमा है। तुरंत साफ़ कपड़े पहनकर प्रणाम किया और प्रतिमा को रथ से उतारकर बावड़ी किनारे प्राचीन मंदिर में विराजमान किया। जैसे ही प्रतिमा को रथ से उतारा वैसे ही रथ अदृश्य हो गया।

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Photo Courtesy: Sanghi ji ka mandir

एक कहानी कुछ इस प्रकार भी है:

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Photo Courtesy: Sanghi ji ka mandir

एक दिन सांगानेर के किसी वृद्ध ने महाराज से कहा कि महाराज इस मंदिर के नीचे कोई तलघर हैं तथा उनमें रत्न जड़ित जिन प्रतिमाएं हैं, ऐसा हमारे पूर्वज कहा करते थे। महाराज ने कहा कि ऐसी बातों पर अधिक विश्वास नही करना चाहिए। लेकिन उसी रात को ब्रह्म मुर्हूत में महाराज को एक सपना आया। सुबह जल्दी उठकर महाराज ने कहा कि आप लोगों द्वारा कही गयी बात झूठी नहीं है, मुझे सपने में भूगर्भ स्थित जिनालय के दर्शन हुए हैं। इसके बाद महाराज ने पूजा वाले कमरे में गुफाद्वार पर कुछ दिन तक जाप किया। दशमी को प्रातःकाल 7:30 बजे गुफा में अकेले ही प्रवेश किया । 20 से 25 मिनट बाद महाराज चैत्यालय लेकर गुफा द्वार पर आए। बाहर बड़ी तादाद में जन समूह इकठ्ठा था, सैकड़ों कलशों से अभिषेक हुआ। उस समय आचार्य शांतिसागर महाराज ने अपने उपदेश में कहा कि यह मंदिर सात मंजिला है। पांच मंजिला नीचे है और दो मंजिला ऊपर है। अंतिम दो तल्लों में कोई नहीं जा सकता है। बीच की पांच मंजिल में यह रत्नजड़ित चैत्यालय विराजमान है। तब पहली बार जनता ने दर्शन किये थे।

ये कुछ किस्से-कहानियाँ हमनें आपके सामने रखी है। ये किस्से-कहानियाँ आपको पुराने समय में ले जाती है, हालाँकि इसकी प्रमाणिकता की बात नहीं कर सकते लेकिन ये हमें इमेजिनरी तरीके से ही क्यों न हो पर हमें उस दौर में ले जाने का मौका ज़रूर देती है।

अगर आपके पास भी ऐसी कोई स्टोरी हो और आप उसे जयपुर वालों के सामने लाना चाहते हो तो हमें लिख भेजिए।

नोट: ये कंटेंट हमें इसी मंदिर की वेबसाइट के साथ-साथ कुछ और ब्लोग्स से मिला है।  

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