कांवड़ यात्रा को लेकर कई मान्यताएं हमारे समाज में प्रचलित हैं. इन मान्यताओं की माने तो सबसे पहले कांवडिये को लेकर भी अलग-अलग मत है. कांवड़ यात्रा (Kaanwad Yatra) का सम्बन्ध भगवान शिव से है. ऐसा कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान विष्णु के शयन-दौर में चले जाने के कारण शिव को ही तीनो लोक की देखभाल करनी पड़ती है इस वजह से वह अपने ससुराल कनखल, हरिद्वार, जो कि राजा दक्ष का नगर है, में रहने आ जाते हैं. इसलिए कांवडिये सावन के महीने में गंगा जल लेने हरिद्वार आते हैं.

अलग-अलग मान्यताओं में से एक के अनुसार भगवान परशुराम सबसे पहले कांवडिये थे. उन्होंने ब्रीजघाट जिसे पहले गढ़मुक्तेश्वर कहा जाता था, से गंगा जल लाकर, उत्तरप्रदेश के बागपत जिले के ‘पुरा महादेव’ का अभिषेक किया. वहीं कोई कहता है भगवान राम, सबसे पहले कांवडिये थे. उन्होंने सुल्तानगंज(बिहार) से गंगा जल लेकर देवघर(झारखण्ड) स्थित बैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग का अभिषेक किया.

राजस्थान के कांवडिये:

यहाँ के मारवाड़ी समाज के तीर्थ पुरोहित गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ से जो गंगा जल लेकर आते थे उसे वे प्रसाद के रूप में बांटते थे, उन्हें कांवडिये कहा जाने लगा. ये लोग गोमुख से जल लेते और रामेश्वरम ले जाकर भगवान शिव का अभिषेक करते.

जयपुर में गलता जी (Galta Ji) ऐसा तीर्थ है जहाँ कांवडिये जल लेने के लिए आते हैं. कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद कांवडिये शुद्ध होकर यहाँ बने कुंड से जल लेकर शहर के शिव मंदिरों का जलाभिषेक करते हैं. इस दौरान हजारों की तादाद में कांवडिये केसरिया रंग में रंगे नज़र आते हैं. कांवडियों में भी अब डीजे का फैशन आ गया है. हर ग्रुप का अपना डीजे होता है जो भगवान शिव के ट्रेंडिंग गानों से गूँज रहा होता है. लेकिन वहीं कुछ ऐसे भी होंगे जो शांति से अपना कर्तव्य निभाते नज़र आ जायेंगे.

कांवड़-यात्रा का दूसरा चेहरा:

इसका दूसरा चेहरा खूबसूरत नहीं है. वह शोर, गंदगी, कचरे आदि से सना हुआ दिखाई देता है. कांवड़-यात्रा का सामाजिक और धार्मिक महत्त्व है उसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन अगर ऊपर चित्रित किए गए चेहरे पर भी नज़र डाले तो यकीन मानिए आप दुखी हो जाएँगे. सावन के महीने में गलता जी का वह रूप नहीं रहता जो साल के दूसरों महीनो में मिल जाता है. इस महीने आप वहां आदमियों-औरतों के अलावा बंदरों के दिखने की उम्मीद रख सकते हैं. लेकिन बंदर न जाने कहाँ चले जाते हैं. उनकी जगह दीखता है तो बस चारों ओर फैला हुआ कचरा. इंसानी कचरा. न सरकार की ओर से इस कूड़े के हटाने की कोई व्यवस्था नज़र आती है न ही लोगों की ओर से किसी भी तरह की जागरूकता.

यदि इन सब बातों पर ध्यान दे दिया जाए तो यकीन मानिये सावन में कांवड़-यात्रा से ज्यादा मज़ेदार कुछ भी नहीं मिलेगा.