जयपुर जाना हो तो आमेर फोर्ट तो जाना होता ही है। वहाँ घूम लेते है फोटो ले लेते है, सेल्फियाँ ले ली जाती है। लेकिन अक्सर सेल्फी, फोटो लेते वक़्त नीचे बनी झील और उसमें बनी बगीची भी फोटो में आ ही जाती है। मन में एक सवाल इसे जानने को लेकर आता ही होगा कि आख़िर कब और क्यों इसे बनाया गया होगा? इसका इतिहास क्या रहा होगा? क्या आपने कभी उसके बारे में जानने की कोशिश की है? आइये हम बताते है…

जयपुर के पास आमेर किले का परिसर, किले के पैरों में बनी एक छोटी झील, माओटा लेक। इसी में एक बगीची भी बनी है, केसरिया रंगों के फूलो से सजी हुई।

केसर क्यारी को क़रीब 1600 में औरतों के लिए बनवाया गया। ये एक अन्तःपुर था। इस अन्तःपुर में औरते रहा करती थी। किले की ओर से इसे देखा जा सके इसलिए इसे नीचे की ओर बनाया गया। टॉम टर्नर के अनुसार यहाँ एक पुल्ली सिस्टम(चरखी तंत्र) हुआ करता था, जो औरतों को उनके कमरों से सीधे इस बगीचे में पहुँचा देता था। ये ऐसा इसलिए किया गया ताकि राह में आते-जाते पराए मर्द की नज़र इन औरतों पर ना पड़े। इसका नाम केसर क्यारी, यहाँ उगते उन केसरियां रंग के फूले से पड़ा था जो तारों के आकार का होता था। हालाँकि अब जलवायु परिवर्तन की वजह से उसका उगना बंद हो चूका है।

वैसे कुछ विद्वान इसे मौनबाड़ी के नाम से भी बुलाते है। उनका कहना है इसे रात के अँधेरे में देखने के लिए बनाया गया था। बाहर की और निकले ये पीले संगमरमर के पत्थर चाँदनी रात में ऐसे चमकते थे मानो उन पौधों के बीच चाँदनी रात कोई एक खूबसूरत पैटर्न बना रही हो।
क्या ख़ास बात है इसकी?: बीहड़ जैसी पहाड़ियों के बीच बनी इस झील में ये मन-मेड आर्किटेक्चर का शानदार नमूना है। इसका आर्किटेक्चर इतना साफ़ बना है कि इतनी उंचाई से देखने पर भी आपको ये स्पष्ट रूप से नज़र आएगा। इसके अन्दर लगे संगमरमर के पत्थर, उन पर किया गया काम। केसर क्यारी को 400 साल पुरानी होने के बावजूद, इन सब के मिलन की वजह से आज भी एक नयापन लिए नज़र आती है।
