कभी जयपुर की प्यास बुझाने वाला ‘तालकटोरा’, आज अज्ञातवास में ‘प्यासा’ है // Talkatora News

पहले झील, फिर तालाब और अब…? इंसानी लालसा का जीता-जागता उदहारण यदि जयपुरवासियों को देखना है तो उन्हें कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है। सिटी पैलेस के उत्तरी छोर, जयनिवास गार्डन के पीछे और बादल महल के नज़दीक बना ‘ताल-कटोरा (कटोरे के आकार का तालाब)’ कभी जयपुर शहर की प्यास बुझाया करता था, लेकिन आज उसमें पानी होने के बावजूद ‘प्यासा’ मर रहा है। कारण है, देखरेख का अभाव।Talkatora5

ऐसा कहा जाता है जयपुर शहर के बसने से पहले तालकटोरा एक आमेर झील का हिस्सा था। कालांतर में, शहरी बसावट होने के बाद झील सिमटती चली गई। तब सवाई जय सिंह ने तालकटोरा को गहरा करवाया और इसके पानी को शहरवासियों के लिए उपलब्ध करवाया। यहाँ तब काफ़ी संख्या में घड़ियाल रहते थे। उनकी खातिरदारी दरबार की ओर से होती थी। घड़ियालों के साथ राज-परिवार आखेट का आनंद उठाते थे। तालकटोरा को भरने के लिए नाहरगढ़ से के चौड़ा नाला अन्दर गिरता था जिसे नंदी (नदी) कहा जाता था। नंदी से मानसून का पानी नाहरगढ़ से होते हुए तालकटोरा में आता था। इस तरह से साल भर तक इसी से ही पीने का पानी शहर भर में जाता था।Talkatora4

शहर बढ़ता गया और वह झील गायब होती चली गयी। नंदी को शहरीकरण खा गया और तालकटोरा सूखने की ओर बढ़ गया। आज से करीब 20 साल पहले लगभग पूरी तरह सूख गया। इसके साथ ही तालकटोरा के घड़ियाल कहानियों में सिमट कर रह गए। जब तालकटोरा सूखा तो आसपास के लोगों के लिए वह मात्र एक कूड़ादान बनकर रह गया। इसके बाद के हालत और भी ख़राब होते गए। लोगों के घरों का गन्दा पानी उसी में ही घिरने लगा जिसके चलते कभी पीने के पानी का स्त्रोत रहा तालकटोरा एक ज़हरीला, बदबूदार और काले पानी का गटर बनकर रह गया। जब आसपास के घरों में रहने वाले लोगों के लिए जीना दूभर हो गया तब उन्हें एहसास हुआ कि कितनी बड़ी गलती हो गई।Talkatora3

कुछ सालों पहले इसकी सार-संभाल की गई लेकिन वह सुनहरा कल कभी नहीं आया जो जयपुर के शुरूआती दौर में हुआ करता था। आज इसमें पानी है लेकिन बस देखने भर के लिए। जिस तरह से तालकटोरा अपना अस्तित्व बचाने में लगा है यदि अब भी ध्यान नहीं दिया गया तो कोई आश्चर्य नहीं कि जल्द ही ये इतिहास के पन्नों तक ही सीमित रह जाए।

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